वक्त कम है
गुज़रते हुए वक्त को
कौन रोक सकता है,
ठेहरे हुए गिरह से
कौन भाग सकता है।
न खेलो यूं अपनी ज़िंदगी से
वक्त कम है,
खुशियां हैं चुनिंदा
कभी-कभी तो बस
ग़म ही ग़म है।
ख्याबों का पुलिंदा लिए
चल रही हूं मैं,
उम्मीदों से भरा सफ़र
तय कर रही हूं मैं..
हर सांस में उसका खयाल है
हर दिन की शुरुआत है,
उस झरोके में बह जाउं
तो ग़म नहीं,
न याद करें हम
तो मलाल है।
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