मुहब्बत बेरहम है

घुट कर देखना कभी
महसूस करना कभी
क्या होता है हश्र
जब पैगाम न आये
यार का...

इंतज़ार करने की
तो आदत है अब हमें,
गिरह को भी थका दें
इतना यकीन है हमें।

कभी भूल के भी
भूलना न हमें।
न ग़ुफ्तगू हो..
दुआ में याद रखना हमें।

न था इल्म
कि मुहब्बत
बेरहम भी है,
शिक़ायत है परवरदीगार से
क्यों हुआ इश्क़
जब देखा पहली बार तुम्हे।

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