एक नज़र तुम्हारी

वो जो हैं मशगूल
अपने नए यार में
उनकी हर बात को संजोते,
कभी हमसे भी करते थे
यूं नादानियां ..

जाने अनजाने में
छोड़ गए वो अपनी यादें,
हम करें क्या
उनकी बेपरवाह बातों का
जो आज भी साथ नहीं छोड़तीं

रफ्तार में बह चले तुम ऐसे
कि न ज़ुर्रत की
हमें एक नज़र देखने की
फौलाद थे या न जाने
डर कर सहम गए तुम

गुज़ारिश है इतनी ऐ जान-ए-मन,
विदा लेंगे जब हम
एक नज़र तुम्हारी
सुला देगी हमें खुशी से

उस तख्त़-ए-ताबूत पर।

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