कुर्सियां



कुर्सियां कुछ इस तरह
थी रखीं
कि शोरगुल में भी
एक-दूसरे की धड़कने
सुन सकते थे ।

बातें इतनी कर ली थीं
दिलों ने
कि जु़बाँ भी बोलने से
कतरा रहीं थीं...

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